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सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, कब्जाधारी को जमीन पर अधिकार जताने का हक

Aug 08 2019.   the supreme court is hearing petitions challenging a 2010 allahabad high court order that trifurcate सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक बेहद अहम फैसला दिया है। उसने व्यवस्था दी है कि कब्जाधारी व्यक्ति (एडवर्स पजेसर) उस जमीन या संपत्ति का अधिकार लेने का दावा कर सकता है जो 12 वर्ष या उससे अधिक समय से बिना किसी व्यवधान के उसके कब्जे में है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा है कि इतना ही नहीं अगर ऐसे व्यक्ति को इस जमीन से बेदखल किया जा रहा है तो वह उसकी ऐसे रक्षा कर सकता है जैसे वह उसका मूल स्वामी हो। जस्टिस अरुण मिश्रा, एसए नजीर और एमआर शाह की पीठ ने यह व्यवस्था देते हुए पूर्व में इस संबंध में शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ के फैसले को सही कानून नहीं माना और उसे निरस्त कर दिया। लेकिन उन्होंने इस बारे में विभिन्न उच्च न्यायालय और शीर्ष अदालत की पीठ के अलग-अलग दिए गए फैसलों को देखते हुए इस मुद्दे को अंतिम रूप से निर्णित करने के लिए बड़ी बेंच (संविधान पीठ) को रेफर कर दिया। इससे पूर्व 2014 में उच्चतम न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने फैसला दिया था कि एडवर्स कब्जाधारी व्यक्ति जमीन का अधिका

नाराज़ी याचिका (Protest Petition) प्रस्तुत होने पर क्या कार्यवाही करें मजिस्ट्रेट: सुप्रीम कोर्ट ने समझाया [निर्णय पढ़े]

नाराज़ी याचिका (Protest Petition) प्रस्तुत होने पर क्या कार्यवाही करें मजिस्ट्रेट: सुप्रीम कोर्ट ने समझाया [निर्णय पढ़े] ===================================== 28 July 2019. "मजिस्ट्रेट को नाराज़ी याचिका (protest petition) को 'परिवाद' (complaint) मानते हुए संज्ञान लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है." सुप्रीम कोर्ट ने विष्णु कुमार तिवारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में नाराज़ी याचिका दायर होने पर मजिस्ट्रेट को क्या प्रक्रिया अपनानी चाहिए, यह समझाया है. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के. एम. जोसफ ने यह कहा कि यदि नाराज़ी याचिका 'परिवाद' की शर्तों को पूर्ण करती है तो उसे परिवाद की तरह मानकर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा २०० और २०२ के तहत मजिस्ट्रेट एक्शन ले सकता है. पीठ ने कहा कि यदि मजिस्ट्रेट नाराज़ी याचिका को 'परिवाद' के रूप में नहीं स्वीकारता है तो शिकायतकर्ता/ परिवादी के पास यह समाधान है कि वह नया परिवाद दायर करें और मजिस्ट्रेट को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा २०० और २०२ के तहत प्रक्रिया का अनुसरण करने हेतु प्रेरित करें. सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्