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नवंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सीआरपीसी की धारा 362 अदालत को अपना ही आदेश वापस लेने का अधिकार नहीं देती : सुप्रीम कोर्ट

सीआरपीसी की धारा 362 अदालत को अपना ही आदेश वापस लेने का अधिकार नहीं देती : सुप्रीम कोर्ट  ========================= सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 362 किसी अदालत को उसके द्वारा पारित पहले के आदेश को वापस लेने का अधिकार नहीं ।,देती। कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 362 केवल किसी लिपिकीय या अंकगणितीय भूल सुधारने के प्रावधान का उल्लेख करती है। न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने इस मामले में आरोपियों के खिलाफ बलात्कार और बाल यौन उत्पीड़न के आरोप रद्द करने के अपने पहले के फैसले को वापस लेने के केरल हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।  न्यायमूर्ति के. हरिपाल की अध्यक्षता वाली हाईकोर्ट की पीठ ने इस मामले की शुरुआत में पीड़िता के साथ आरोपी की शादी होने के आधार पर आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी थी। बाद में न्यायाधीश ने इन आदेशों को वापस लेते हुए जियान सिंह बनाम पंजाब राज्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ध्यान में रखते हुए हत्या, बलात्कार जैसे जघन्य और गंभीर अपराधों को स्वीकार किया और कहा कि ऐसे अन्य अपराधों को "आरोपी और पीड़ित या पीड़ित

कानून संपत्ति खरीदने का सौदा करने के बाद मालिक रजिस्ट्री नहीं करे तब क्या है खरीददार के अधिकार

जानिए हमारा कानून/संपत्ति खरीदने का सौदा ... जानिए हमारा कानून संपत्ति खरीदने का सौदा करने के बाद मालिक रजिस्ट्री नहीं करे तब क्या है खरीददार के अधिकार ///////////////////////////////////////////// स्वयं की संपत्ति खरीदना हर व्यक्ति का सपना होता है। भारत भर में मकान जमीन खरीदने के सैकड़ों सौदे प्रतिदिन किए जाते हैं। अधिकांश तो इन सौदों में किसी प्रकार की समस्या नहीं आती है पर कुछ प्रकरण ऐसे होते हैं जिनमें कुछ समस्याएं हो जाती हैं। ऐसी समस्या होने पर खरीददार सबसे पहले अपने विधिक अधिकारों को तलाशता है। कोई ऐसी प्रक्रिया जानना चाहता है जिससे उसको राहत मिल सके। अमूमन देखने में आता है कि किन समस्याओं में सबसे बड़ी समस्या है कि विक्रेता अपनी संपत्ति को बेचने का सौदा तो कर देता है परंतु सौदे के बाद संपत्ति की रजिस्ट्री करने में आनाकानी करता है तथा खरीददार को हिले हवाले देता है। मकान से जुड़े हुए सौदे एक बहुत बड़ी धनराशि में होते हैं। यह धनराशि किसी व्यक्ति के सारे जीवन की जमा पूंजी भी हो सकती है। ऐसी परिस्थिति में कानून खरीददारों के अधिकारों की रक्षा की संपूर्ण और सरल व्यवस्था करता है। कानून

बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने यूपी के 28 वकीलों को कदाचार में लिप्त होने के आरोप में निलंबित किया

फर्ज़ी दुर्घटना दावा याचिकाएं : बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने यूपी के 28 वकीलों को कदाचार में लिप्त होने के आरोप में निलंबित किया  ----------------------------------------------------------------------- बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से उत्तर प्रदेश के 28 अधिवक्ताओं को "फर्जी दावा मामले दर्ज करने के कदाचार में लिप्त" होने के आरोपों पर निलंबित करने के अपने निर्णय को अधिसूचित किया है। बार काउंसिल की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के बाद आई है जिसमें यूपी / एसआईटी राज्य को उन अधिवक्ताओं के नाम देने का निर्देश दिया गया, जिनके खिलाफ मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण और कामगार मुआवजा अधिनियम के तहत फर्जी दावे करते हुए याचिका दायर करने वाले संज्ञेय अपराधों के मामलों का प्रथम दृष्टया खुलासा किया गया है, ताकि बीसीआई कार्रवाई कर सके। जिन वकीलों को निलंबित किया गया है, उनमें एसआईटी द्वारा उपलब्ध कराए गए नाम शामिल हैं जिनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है और जिनके खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया है। प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, बार काउंसिल ने गहन विचार-विमर्श के ब

चार्जशीट दाखिल करने के बाद आत्मसमर्पण करने और नियमित जमानत के लिए आवेदन करने का विकल्प होने से पक्षकारों को अग्रिम जमानत लेने से नहीं रोका जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

चार्जशीट दाखिल करने के बाद आत्मसमर्पण करने और नियमित जमानत के लिए आवेदन करने का विकल्प होने से पक्षकारों को अग्रिम जमानत लेने से नहीं रोका जा सकता: सुप्रीम कोर्ट  =========================== सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार ("16 नवंबर") को कहा कि चार्जशीट दाखिल करने के बाद आत्मसमर्पण करने और नियमित जमानत के लिए आवेदन करने का विकल्प होने से पक्षकारों को सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत लेने से नहीं रोका जा सकता है।  वर्तमान मामले में न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के 23 जुलाई, 2021 के आदेश का विरोध करने वाली एक विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी।  आक्षेपित आदेश के अनुसार उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता की दूसरी अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी थी। उच्च न्यायालय ने शीर्ष न्यायालय के 7 अक्टूबर, 2020 के आदेश का हवाला देते हुए कहा था कि दूसरी अग्रिम जमानत याचिका दायर करने का कोई सवाल ही नहीं था और आवेदकों को निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करके और नियमित जमानत के लिए आगे बढ़ते हुए उच्चतम न्यायालय के निर्देश का पालन करना चाहिए था। पी

कोर्ट ने ऑनलाइन सिस्टम से मुआवजे के वितरण और मोटर दुर्घटना के दावों के शीघ्र फैसले के संबंध में अतिरिक्त दिशा- निर्देश जारी किए

 कोर्ट ने ऑनलाइन सिस्टम से मुआवजे के वितरण और मोटर दुर्घटना के दावों के शीघ्र फैसले के संबंध में अतिरिक्त दिशा- निर्देश जारी किए  ---------------------------  सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ऑनलाइन सिस्टम से मुआवजे के वितरण और मोटर दुर्घटना के दावों के शीघ्र फैसले के संबंध में कई निर्देश जारी किए। जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने बीमा कंपनी बजाज आलियांज द्वारा दायर रिट याचिका जिसमें मामले में दिशा-निर्देशों की मांग की थी, सुनवाई करते हुए इससे पहले याचिकाकर्ता को निर्देश दिया था कि वह उच्च न्यायालय के पिछले आदेशों के संदर्भ में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के समक्ष मामलों में तेज़ी से मुआवजे के वितरण की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए दिशा-निर्देशों का मसौदा तैयार करे। 24 फरवरी, 2021 को शीर्ष न्यायालय ने मोटर दुर्घटना दावा अधिनियम के तहत मामलों की सुनवाई करते हुए पीड़ितों को मुआवजे के ऑनलाइन भुगतान के मुद्दे पर विचार करने और अन्य मुद्दों पर विचार करने का निर्णय लिया था जो निर्णय प्रक्रिया को गति देने में मदद करेंगे। पीठ ने अपने आदेश में निम्नलिखित निर्देश देते हुए कहा,

जब पति पत्नी दोनों तलाक पर सहमत हो तो कैसे लिया जाए तलाक। समझे कानूनी प्रक्रिया।

जब पति पत्नी दोनों तलाक पर सहमत हो तो कैसे लिया जाए तलाक। समझे कानूनी प्रक्रिया। =========================  वैवाहिक संबंधों को भविष्य की आशा पर बांधा जाता है। विवाह के समय विवाह के पक्षकार प्रसन्न मन से एक दूसरे से संबंध बांधते हैं। कुछ संबंध सदा के लिए बन जाते हैं तथा मृत्यु तक चलते हैं परंतु कुछ संबंध ऐसे होते हैं जो अधिक समय नहीं चल पाते और पति पत्नी के बीच तलाक की स्थिति जन्म ले लेती है। एक स्थिति ऐसी होती है जब विवाह का कोई एक पक्षकार तलाक के लिए सहमत होता है तथा दूसरा पक्षकार तलाक नहीं लेना चाहता है और एक स्थिति वह होती है जब तलाक के लिए विवाह के दोनों पक्षकार पति और पत्नी एकमत पर सहमत होते हैं। ऐसी स्थिति में भारतीय कानून में क्या व्यवस्था दी गई है? इससे संबंधित जानकारियों को  प्रस्तुत किया जा रहा है और साथ ही उस प्रक्रिया का भी उल्लेख किया जा रहा है जो ऐसी स्थिति में तलाक हेतु अपनाई जाती है। अनेक मामलों में यह देखा जाता है कि जब विवाह के दोनों पक्षकार तलाक हेतु सहमत होते हैं तब वह अज्ञानता में नोटरी या शपथ पत्र के माध्यम से तलाक कर लेते हैं। कुछ परिस्थितियां तो ऐसी देखी गई हैं

"जमानत देने के लिए सख्त शर्तें लगाना जमानत से इनकार करने के समान": सुप्रीम कोर्ट

"जमानत देने के लिए सख्त शर्तें लगाना जमानत से इनकार करने के समान": सुप्रीम कोर्ट  ------------------ सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि जमानत देने के लिए सख्त शर्तें लगाना जमानत से इनकार करने के समान है। कोर्ट ने कहा, "हमारा विचार है कि जमानत देने के लिए सख्त शर्तें लगाना जमानत से इनकार करने के समान है।" न्यायमूर्ति नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बीआर गवई की खंडपीठ ने उड़ीसा उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को 20 लाख रुपये नकद जमा करने और जमानत के लिए 20 लाख रुपये की अचल संपत्ति को सिक्योरिटी के रूप में रखने पर जमानत देने का निर्देश दिया।  याचिकाकर्ता भारतीय दंड संहिता की धारा 467, 468, 471, 420 और 120बी और प्राइज चिट और धन संचलन योजना (प्रतिबंध) अधिनियम की धारा 4, 5 और 6 के तहत अपराध करने के एक आपराधिक मामले में आरोपी है। याचिकाकर्ता को उड़ीसा उच्च न्यायालय ने 25 मार्च 2021 को जमानत दी थी, जिसके अधीन उसे 20 लाख रुपये नकद जमा करने और 20 लाख रुपये की अचल संपत्ति को सिक्योरिटी के रूप में रखने का निर्देश दिया था। याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने का निर्

अपराधिक मामले में डिस्चार्ज होने के लिए अभियुक्त के दलील या दस्तावेज प्रस्तुत करने पर क्या सीमाएं हैं? धारा 227 CrPC

धारा 227 CrPC : जानिए डिस्चार्ज होने के लिए अभियुक्त के दलील या दस्तावेज प्रस्तुत करने पर क्या सीमाएं हैं?  ===========================  जब कभी किसी मामले का अभियुक्त, मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है, और मजिस्ट्रेट को ऐसा लगता है कि उस अभियुक्त द्वारा कथित तौर पर किया गया अपराध, अनन्यतः (exclusively) सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय (triable) है तो वह मजिस्ट्रेट, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 209 की शर्तों के अधीन, मामले को सुपुर्द (commit) कर देता है (सेशन न्यायालय को)। गौरतलब है कि मजिस्ट्रेट इस बात की सूचना, लोक अभियोजक (Public Prosecutor) को भी दे देता है कि उसके द्वारा वह मामला सेशन न्यायलय को सुपुर्द किया जा रहा है।   ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि संहिता की धारा 226 के अनुसार, एक अभियोजक अपने मामले का कथन, अभियुक्त के विरुद्ध लगाये गए आरोप का वर्णन करते हुए और यह बताते हुए आरम्भ करता है कि वह अभियुक्त के दोष को किस साक्ष्य से साबित करेगा। जैसा कि हम जानते हैं कि आपराधिक न्याय प्रशासन की एडवरसेरियल प्रणाली में, आरोप पत्र से अभियुक्त के खिलाफ सामग्री को बाहर नि

क्या भारत में निरक्षरों को वास्तव में सूचना का अधिकार उपलब्ध है? बिबेचना

क्या भारत में निरक्षरों को वास्तव में सूचना का अधिकार उपलब्ध है?  ---------------------------------------------  अक्सर आप ऐसा समाचार पढ़ते हैं, जिसमें एक कार्यकर्ता आरटीआई (Right To Information) आवेदन दाखिल करके लोगों की मदद करता है, हालाँकि आपने इसे कई बार पढ़ा है, लेकिन क्या आपके सामने कभी एक प्रश्न खड़ा हुआ - यदि सूचना का अधिकार एक मौलिक अधिकार (Fundamental Right) है तो निरक्षर स्वयं इस अधिकार का इस्तेमाल क्यों नहीं कर सकते? इस लेख में, मैं उन सभी प्रासंगिक (Relevant) प्रावधानों का विश्लेषण (Analysis) करूंगा जो निरक्षरों के सूचना के अधिकार की सुविधा प्रदान करते हैं। हालांकि यह कहा जाता है कि आरटीआई गरीबों तक पहुंचने में विफल रहा है, अधिकांश मौजूदा साहित्य या रिसर्च इस कानून के बारे में जागरूकता की कमी को प्राथमिक कारण के रूप में दोषी ठहराते हैं, हालांकि मेरा मानना है कि कानून ही इनके हितों की रक्षा के लिए पर्याप्त उपाय प्रदान नहीं करता है। अनपढ़ लोग इस देश की बड़ी आबादी का गठन करते हैं, इसके अलावा ये वे लोग हैं जो भ्रष्ट प्रथाओं से बुरी तरह प्रभावित हैं और नीतिगत निर्णयों का इन पर ही ज़

क्या करें जब पति बिना किसी कारण पत्नी को छोड़ दे? जानिए क्या हैं कानूनी प्रावधान

क्या करें जब पति बिना किसी कारण पत्नी को छोड़ दे? जानिए क्या हैं कानूनी प्रावधान  ------------------------------------- भारत में विवाह एक पवित्र संस्था है। हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act, 1955) के अंतर्गत विवाह को एक संस्कार के रूप में प्रस्तुत किया गया है। प्राचीन काल से ही विवाह को एक संस्कार माना जाता रहा है। वर्तमान परिस्थितियों में विवाह के स्वरूप में परिवर्तन आए हैं। समाज के परिवेश में भी परिवर्तन आए हैं। एक परिस्थिति ऐसी होती हैं जब किसी पति द्वारा पत्नी को बगैर किसी कारण के घर से निकाल दिया जाता है या छोड़ दिया जाता है। ऐसी स्थिति में यदि महिला कामकाजी नहीं है तो उसके सामने आर्थिक संकट भी खड़ा हो जाता है।  यह हालात अत्यंत संकटकारी है। इस स्थिति में महिला सर्वप्रथम अपने कानूनी अधिकारों को तलाशती है। इस आलेख में वे कानूनी अधिकार उल्लेखित किए जा रहे हैं जो बगैर किसी वजह के पति द्वारा पत्नी को छोड़े जाने पर पत्नी को प्राप्त होते हैं। भारतीय कानून ने महिलाओं को अनेक अधिकार दिए हैं। उन अधिकारों में कुछ अधिकार ऐसे हैं जो एक पत्नी को प्राप्त होते हैं। पत्नी को बिना किसी कारण क