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सहमति से बनाए गए संबंध बलात्कार नहीं

 सुप्रीम कोर्ट ने आज एक बार फिर दोहराया कि दो वयस्कों के बीच सहमति से बनाया गया संबंध जो विवाह में परिणत नहीं होता, उसे आपराधिक अपराध नहीं माना जा सकता। न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में आज विवाह के झूठे वादे के तहत बलात्कार और आपराधिक धमकी के आरोपी प्रशांत के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि अभियोजन पक्ष “कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग” कर रहा है। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति नोंगमईकापम कोटिस्वर सिंह की पीठ द्वारा दिए गए निर्णय में सहमति से बनाए गए संबंधों को आपराधिक कृत्यों से अलग करने के महत्व पर प्रकाश डाला गया है और व्यक्तिगत विवादों में आपराधिक कानूनों के दुरुपयोग को रोकने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। मामले की पृष्ठभूमि यह मामला 29 सितंबर, 2019 को पुलिस स्टेशन साउथ रोहिणी, दिल्ली में दर्ज एक प्राथमिकी (सं. 272/2019) से उत्पन्न हुआ। शिकायतकर्ता ने अपीलकर्ता प्रशांत पर विवाह के बहाने बार-बार उसका यौन उत्पीड़न करने और विरोध करने पर उसके भाई को नुकसान पहुंचाने की धमकी देने का आरोप लगाया। उसने आरोप लगाया कि प्रशांत ने 2017 में रिश्ते की शु...

पुरुष द्वारा शादी का झूठा वादा करने पर हो सकता है जेल

आजकल कई पुरुष शादी का झूठा वादा करके महिलाओं को अपने जाल में फंसा लेते हैं। जिसमें वे महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं और फिर उनसे शादी करने से इनकार कर देते हैं। इससे महिलाओं को न केवल मानसिक और भावनात्मक रूप से बहुत तकलीफ होती है, बल्कि उनके जीवन पर भी गहरा असर पड़ता है। महिलाओं के साथ होने वाले इस शोषण को एक गंभीर अपराध माना जाता है, जिसके बारे में सभी को जागरुक होना बहुत ही जरुरी है। इसलिए इस लेख द्वारा हम ऐसे अपराध से संबधित भारतीय न्याय संहिता की धारा 69 के बारे में जानेंगे, कि बीएनएस की धारा 69 क्या है- इस धारा में सजा, जमानत, बचाव और अपराध से जुडी जानकारी। महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों को रोकने व उन्हें जल्द से जल्द न्याय दिलवाने के लिए कानूनों को पहले से अधिक सख्त किया जा रहा है। इसी प्रकार से नए कानून BNS जिसने IPC की जगह ले ली है। इसके अंदर महिलाओं को शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाने के अपराध को भारतीय न्याय संहिता की धारा 69 के अपराध के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसलिए शादी का झूठा वादा क्यों एक गंभीर अपराध है? अगर आप भी इस विषय के बारे में अधिक जानना ...

एलएमवी लाइसेंस धारक को भारी वाहनों को चलाने की अनुमति व मुआवजा भी: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिससे एल एम वी ड्राइवर लाइसेंस धारक लाखों लोगों को फायदा पहुंचेगा। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने हल्के मोटर वाहन (एलएमवी) का ड्राइविंग लाइसेंस रखने वालों को 7,500 किलोग्राम तक के वजन वाले परिवहन वाहन चलाने की अनुमति दे दी है. जानिए किस मामला में ये फैसला आया है बार बार विभिन्न न्यायालयों में ये कानूनी सवाल उठ रहा था कि एल एम वी धारक ड्राइवर के मामले में दुर्घटना कारीत होने पर मुआवजा मिलेगा या नहीं। इसी कानूनी सवाल ने बीमा कंपनियों और अदालतों के बीच बराबर द्वंद चल रहा था। बीमा कंपनियों का तर्क था कि जब कोई व्यक्ति एलएमवी लाइसेंस के तहत ट्रांसपोर्ट वाहन चलाता है और दुर्घटना होती है, तो उन्हें मुआवजा देने के आदेश सही है या नहीं। बीमा कंपनियों का तर्क है कि  एलएमवी लाइसेंस धारक को भारी वाहनों को चलाने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए, क्योंकि इसके लिए अलग लाइसेंस का प्रावधान है. सुप्रीम कोर्ट के फैसला से एलएमवी लाइसेंस धारक 7,500 किलोग्राम तक के वजन वाले ट्रांसपोर्ट वाहन...