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पुरुष द्वारा शादी का झूठा वादा करने पर हो सकता है जेल

आजकल कई पुरुष शादी का झूठा वादा करके महिलाओं को अपने जाल में फंसा लेते हैं। जिसमें वे महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं और फिर उनसे शादी करने से इनकार कर देते हैं। इससे महिलाओं को न केवल मानसिक और भावनात्मक रूप से बहुत तकलीफ होती है, बल्कि उनके जीवन पर भी गहरा असर पड़ता है। महिलाओं के साथ होने वाले इस शोषण को एक गंभीर अपराध माना जाता है, जिसके बारे में सभी को जागरुक होना बहुत ही जरुरी है। इसलिए इस लेख द्वारा हम ऐसे अपराध से संबधित भारतीय न्याय संहिता की धारा 69 के बारे में जानेंगे, कि बीएनएस की धारा 69 क्या है- इस धारा में सजा, जमानत, बचाव और अपराध से जुडी जानकारी। महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों को रोकने व उन्हें जल्द से जल्द न्याय दिलवाने के लिए कानूनों को पहले से अधिक सख्त किया जा रहा है। इसी प्रकार से नए कानून BNS जिसने IPC की जगह ले ली है। इसके अंदर महिलाओं को शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाने के अपराध को भारतीय न्याय संहिता की धारा 69 के अपराध के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसलिए शादी का झूठा वादा क्यों एक गंभीर अपराध है? अगर आप भी इस विषय के बारे में अधिक जानना

एलएमवी लाइसेंस धारक को भारी वाहनों को चलाने की अनुमति व मुआवजा भी: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिससे एल एम वी ड्राइवर लाइसेंस धारक लाखों लोगों को फायदा पहुंचेगा। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने हल्के मोटर वाहन (एलएमवी) का ड्राइविंग लाइसेंस रखने वालों को 7,500 किलोग्राम तक के वजन वाले परिवहन वाहन चलाने की अनुमति दे दी है. जानिए किस मामला में ये फैसला आया है बार बार विभिन्न न्यायालयों में ये कानूनी सवाल उठ रहा था कि एल एम वी धारक ड्राइवर के मामले में दुर्घटना कारीत होने पर मुआवजा मिलेगा या नहीं। इसी कानूनी सवाल ने बीमा कंपनियों और अदालतों के बीच बराबर द्वंद चल रहा था। बीमा कंपनियों का तर्क था कि जब कोई व्यक्ति एलएमवी लाइसेंस के तहत ट्रांसपोर्ट वाहन चलाता है और दुर्घटना होती है, तो उन्हें मुआवजा देने के आदेश सही है या नहीं। बीमा कंपनियों का तर्क है कि  एलएमवी लाइसेंस धारक को भारी वाहनों को चलाने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए, क्योंकि इसके लिए अलग लाइसेंस का प्रावधान है. सुप्रीम कोर्ट के फैसला से एलएमवी लाइसेंस धारक 7,500 किलोग्राम तक के वजन वाले ट्रांसपोर्ट वाहनों क

जमीन रजिस्ट्री के बाद दाखिल-खारिज (mutation) न होने पर रजिस्ट्री को रद्द करवाने की समय सीमा क्या है ? जानिए कानून क्या है?

जमीन रजिस्ट्री के बाद दाखिल-खारिज (mutation) न होने पर रजिस्ट्री को रद्द करवाने की समय सीमा का सीधा उल्लेख भारतीय विधि में नहीं है, लेकिन इसे सामान्य कानूनों के तहत चुनौती दी जा सकती है। इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान और केस कानून निम्नलिखित हैं:  1. भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 (Indian Contract Act, 1872) की धारा 17 और 18 (Fraud and Misrepresentation) के तहत अगर यह साबित होता है कि रजिस्ट्री धोखाधड़ी या गलत जानकारी के आधार पर की गई है, तो इसे चुनौती दी जा सकती है।    Limitation Act, 1963 के अनुसार, सामान्यतः धोखाधड़ी (Fraud) के आधार पर रजिस्ट्री रद्द करवाने के लिए 3 साल की सीमा होती है। यह समय सीमा तब से शुरू होती है जब धोखाधड़ी या गलती का पता चलता है।  2. Case Law Suraj Lamp & Industries Pvt. Ltd. v. State of Haryana (2011) : इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि रजिस्ट्री या सेल डीड के साथ दाखिल-खारिज का संबंध केवल रिकॉर्ड अपडेट करने के लिए होता है और इसकी कमी से रजिस्ट्री की वैधता पर कोई असर नहीं पड़ता। Satya Pal Anand v. State of Madhya Pradesh (2016) : इस केस में स

हिंदू पति द्वारा खरीदे गए संपत्ति पर पत्नी का क्या है अधिकार ?

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत पति के नाम पर खरीदी गई संपत्ति के उत्तराधिकार और उसकी पत्नी द्वारा उसे बेचने का अधिकार कई कारकों पर निर्भर करता है। ये मुख्य प्रावधान हैं: 1. स्वयं अर्जित संपत्ति (Self-Acquired Property): यदि पति की मृत्यु के बाद जमीन उसकी स्वयं अर्जित संपत्ति मानी जाती है, तो उसका उत्तराधिकार हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार होता है। पति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति के उत्तराधिकारी प्रथम श्रेणी के कानूनी वारिस होते हैं, जिनमें पत्नी, बेटे, बेटियां, और माता शामिल हैं। यदि पत्नी को उत्तराधिकार में हिस्सा मिलता है (जो सामान्य रूप से होता है), तो वह अपने हिस्से की संपत्ति की पूर्ण मालिक होती है और उसे अपनी इच्छा से बेचने का अधिकार होता है। 2. संयुक्त पारिवारिक संपत्ति (Ancestral Property): यदि जमीन संयुक्त परिवार की संपत्ति है, यानी यह पैतृक संपत्ति के रूप में मानी जाती है, तो पति की मृत्यु के बाद पत्नी को उसमें हिस्सेदारी तो मिलती है, परंतु उसे बिना अन्य उत्तराधिकारियों की सहमति के बेचने का अधिकार नहीं होगा। पैतृक संपत्ति में सभी उत्तराधिकारी बराब

Muslim man or woman can file divorce

In India, a Muslim man or woman can file for divorce under the following provisions: For Muslim Men (Talaq) 1. Talaq-e-Ahsan: The most approved form of Talaq, where a man pronounces Talaq once and refrains from cohabiting during the Iddat period (three menstrual cycles). If the couple resumes cohabitation during this period, the Talaq is revoked. 2. Talaq-e-Hasan : The husband pronounces Talaq three times, during successive periods of purity (Tuhr), with no cohabitation during these periods. 3. Talaq-e-Biddat : An instant and irrevocable form of divorce where the husband pronounces Talaq three times at once. This practice was declared unconstitutional by the Supreme Court of India in 2017. For Muslim Women (Talaq) 1. Khula : A woman can seek divorce by offering compensation to the husband. This is done when the husband agrees to release the wife from the marriage in exchange for a financial consideration. 2. Faskh : This is a judicial divorce where a woman approaches the court to disso

सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय के भीतर उप-वर्गीकरण (sub-classification) की अनुमति देने के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। यह फैसला एससी समुदाय के भीतर समानता सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय के भीतर उप-वर्गीकरण (sub-classification) की अनुमति देने के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। यह फैसला एससी समुदाय के भीतर समानता सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।  ----------------------------------------------------------------------- सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों की खंड पीठ के उस फैसले का स्वागत होना चाहिए, जिसमें सामान्य अर्थो में एस सी वर्ग में अधिक पिछड़े तबके/वर्गों के लिए अलग कोटा देने के लिए अनुसूचित जाति के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति दी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि अनुसूचित जाति श्रेणी समरूप नहीं है और अभावों के विभिन्न स्तरो और परिणामी पिछड़ेपन के कारण अंतर-श्रेणी भिन्नताएं मौजूद हैं। यह आम दीर्घकालिक समझ है और उप-वर्गीकरण की अनुमति देकर, सुप्रीम कोर्ट ने उन लोगों के लिए रास्ता खोल दिया है जो अधिक वंचित हैं और अभी तक एफरमेटिव एक्शन का लाभ पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर पाए हैं। इस निर्णय और समाज तथा राजनीति पर इसके प्रभाव को असमानता, भेदभाव, पिछड़ेपन और प्रतिनिधित्व के उचित वैज्ञानिक माप क

क्या आप जानते है कि भविष्य निधि खाता (Provident Fund Account) को सीज या फ्रिज नहीं किया जा सकता

भविष्य निधि खाता (Provident Fund Account) को सीज या फ्रिज नहीं किया जा सकता है। भारतीय कानून के तहत, भविष्य निधि राशि को किसी भी प्रकार की जब्ती से संरक्षित किया गया है। सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के तहत, **अनुच्छेद 60** (Section 60) में उल्लेख किया गया है कि भविष्य निधि और पेंशन को जब्त नहीं किया जा सकता।   इसका मतलब यह है कि कोई भी अदालत या प्राधिकरण भविष्य निधि खाते में जमा राशि को जब्त या सीज नहीं कर सकता है, चाहे वह किसी भी प्रकार का देनदारी मामला हो। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्ति के सेवानिवृत्ति के बाद के जीवन के लिए बचाई गई राशि संरक्षित रहे।   इसलिए, भविष्य निधि खाते को फ्रिज या सीज नहीं किया जा सकता है और इसे सिविल प्रक्रिया संहिता में विशेष सुरक्षा प्राप्त है।