जानिये वकीलों के अदालत व मुवक्किल के प्रति कर्तव्य
कानूनी पेशा, विश्व के सबसे पुराने पेशों में से एक है, और एक रूप में या दूसरे रूप में, यह सदियों से अपनी पहचान के साथ हमारे सामने रहा है। भारत में अंग्रेजों के आगमन के बाद, कानून की प्रैक्टिस के संबंध में कुछ नियम लागू किए गए थे। आजादी से पहले मुख्तार और वकील थे, जिन्हें मुफस्सिल अदालतों में कानून प्रैक्टिस करने की अनुमति थी, हालांकि वे सभी लोग, कानून में स्नातक डिग्री धारक नहीं थे। हालांकि, धीरे-धीरे ऐसे लोगों को इस पेशे से दूर किया गया और उनकी जगह उन लोगों द्वारा ली गई, जिन्हें कानून में डिग्री हासिल करने के बाद जिला स्तर पर प्रैक्टिस करने की अनुमति दी गयी। ऐसे लोगों को अधिवक्ता के रूप में नामांकित किया गया था, वे उच्च न्यायालय सहित उच्च न्यायालय के अधीनस्थ किसी भी अदालत में अभ्यास कर सकते थे। जब ऐसे अधिवक्ताओं की संख्या बढ़ी और कुछ हद तक इस पेशे में प्रोफेशनलिज्म बढ़ा, और फिर यह जरुरत महसूस की जाने लगी कि इन अधिवक्ताओं के सम्बन्ध में कुछ ऐसे मानक तय किये जाने चाहिए, जिनका पालन उन्हें अदालत के सामने प्रैक्टिस करने के दौरान करना चाहिए। स्वतंत्रता के बाद, वह अधिनियम आया (अधिवक्ता अधिनियम, 1961) जिसने कानूनी पेशेवरों से संबंधित कानून को मजबूत किया। इस अधिनियम के अंतर्गत, राज्य के लिए एक बार काउंसिल के अस्तित्व की परिकल्पना की गई है। काउंसिल का कार्य, अधिवक्ताओं के लिए एक रोल तैयार करना और उसे बनाये रखना है। इसके अलावा, राज्य बार काउंसिल को अपने सदस्यों को कदाचार के लिए दंडित करने का दायित्व भी दिया गया है (अनुशासनात्मक क्षेत्राधिकार के तहत), इसी प्रकार राज्य बार काउंसिल का दायित्व, अधिवक्ताओं के अधिकारों, विशेषाधिकारों और हितों की रक्षा करना भी है। जैसा की हम जानते हैं कि एक वकील का कर्तव्य, न्याय के प्रशासन में अदालत की सहायता करना होता है, और चूँकि कानून का सम्बन्ध जनसाधारण से है, इसलिए, एक वकील को सावधानीपूर्वक अपने पेशे से जुडी आचार संहिता का पालन करना चाहिए। एक वकील को ऐसे किसी कार्य में लिप्त नहीं होना चाहिए जो इस महान पेशे की शुचिता को कम करे या समाज में इस पेशे की छवि को धूमिल करे। यही कारण है कि बार काउंसिल के कार्यों में पेशेवर आचरण और शिष्टाचार के मानकों को शामिल किया गया है, जिनका पालन अधिवक्ताओं को इस पेशे की गरिमा और शुद्धता को बनाए रखने के लिए करना चाहिए। अधिवक्ता अधिनियम एवं बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स अधिवक्ता अधिनियम एवं बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स कानूनी के अनुसार इस पेशे की प्रैक्टिस के दौरान, एक वकील को अदालत के प्रति कुछ कर्तव्यों का निर्वहन करना होता है। जैसा कि हम जानते हैं, भारत सरकार ने अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत 'बार काउंसिल ऑफ इंडिया' के रूप में जाना जाने वाला एक वैधानिक निकाय स्थापित किया है। 'बार काउंसिल ऑफ इंडिया' की स्थापना अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 4 के तहत की गयी है। इसी कानून की धारा 7 (1) (बी) के अनुसार, काउंसिल को अधिवक्ताओं के लिए पेशेवर आचरण और शिष्टाचार के मानकों के सम्बन्ध में दिशानिर्देश/नियम बनाने होंगे। वहीँ धारा 49 (1) (c) के अंतर्गत, बार काउंसिल ऑफ इंडिया को अधिवक्ताओं के पेशेवर आचरण के मानकों के सम्बन्ध में सुझाव देने के लिए नियम बनाने की अनुमति दी गयी है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के चैप्टर- II के सेक्शन I, भाग VI का शीर्षक "पेशेवर आचरण और शिष्टाचार के मानक" है, जो न्यायालय के प्रति, अधिवक्ता के कर्तव्यों को निर्दिष्ट करता है। इस भाग में अदालत, मुवक्किल, प्रतिद्वंदी आदि के प्रति एक वकील के 39 नियम या कर्तव्य मौजूद हैं। मौजूदा लेख में हम एक वकील के अदालत के प्रति मुख्य कर्तव्यों को समझेंगे और इसके लिए हम बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के चैप्टर- II के सेक्शन I, भाग VI के तहत तय नियमों का सहारा लेंगे। एक वकील के अपने मुवक्किल के प्रति मुख्य कर्तव्यों को हम पहले ही एक लेख में समझ चुके हैं। वकील के अदालत के प्रति प्रमुख कर्तव्य गरिमापूर्ण तरीके से कार्य करना अपने मामले की प्रस्तुति के दौरान और अदालत के सामने कार्य करते समय, एक वकील को गरिमापूर्ण तरीके से काम करना चाहिए। उसे हर समय आत्म-सम्मान के साथ कार्य करना चाहिए। कानूनी पेशे के एक सदस्य के रूप में, जो अपने आप में एक महान पेशा है, वकीलों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे सम्मानजनक और निर्धारित तरीके से इस पेशे के लिए निर्धारित मानकों के अंतर्गत कार्य करेंगे। और जैसा कि नोरतनमल चौररिया बनाम एम. आर. मुरली AIR -2004 SC 2440 के मामले में अभिनिर्णित किया गया, एक वकील उन मानदंडों का पालन करने के लिए बाध्य होता है, जो उसे अदालत के एक अधिकारी के रूप में इस समुदाय से जुड़े लोगों के बीच के विश्वास के योग्य बनाते हैं। हालांकि, जब भी किसी न्यायिक अधिकारी के खिलाफ गंभीर शिकायत के लिए एक वकील के पास उचित आधार मौजूद होता है, तो अधिवक्ता के पास यह अधिकार और कर्तव्य होता है कि वह उचित अधिकारियों को अपनी शिकायत प्रस्तुत कर सके। इसी प्रकार इन रे:, अजय कुमार पांडे, एडवोकेट, (1998) 7 एससीसी 248 के मामले में, एक अधिवक्ता पर अभद्र भाषा के इस्तेमाल और विभिन्न न्यायिक अधिकारियों के प्रति अनुचित आचरण करने के चलते आपराधिक अवमानना का आरोप लगाया गया था। न्यायालय का सम्मान करना एक वकील को हमेशा अदालत के प्रति सम्मान दिखाना चाहिए। एक वकील को यह ध्यान रखना होगा कि इस पेशे के सफल अस्तित्व के लिए न्यायिक कार्यालय के प्रति सम्मान एक आवश्यक अवयव है। चेतक कंस्ट्रक्शन लिमिटेड बनाम ओम प्रकाश एवं अन्य (1998) 4 एससीसी 577 के मामले में, न्यायालय ने यह अभिनिर्णित किया कि न्यायाधीशों पर किसी प्रकार का आरोप लगाने की प्रथा गलत है। एक न्यायाधीश, निष्पक्ष रूप से और बिना किसी डर के मामलों का फैसला करने के लिए बाध्य हैं। वकीलों को "आतंकित" या "डराने" की अनुमति नहीं दी जा सकती है, केवल इसलिए कि वे न्यायाधीशों से मनचाहे आदेश/फैसले चाहते हैं। न्यायिक अधिकारी से अकेले में संवाद नहीं जैसा कि शम्भू राम यादव बनाम हनुम दास खत्री AIR 2001 SC 2509 के मामले में यह कहा गया था कि कानूनी पेशा, कोई व्यापार या व्यवसाय नहीं है। यह एक महान पेशा है। इस पेशे से जुड़े सदस्यों को बेईमानी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं देना चाहिए, और जहाँ तक यह कानूनी रूप से संभव है, वहां तक अपने मुवक्किलों को न्याय दिलाने के लिए प्रयास करना होगा। इस पेशे की विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा इस बात पर निर्भर करती है कि पेशे के सदस्य, खुद को किस तरह से संचालित करते हैं। किसी न्यायाधीश के समक्ष लंबित किसी भी मामले के संबंध में एक वकील को न्यायाधीश के समक्ष निजी रूप से संवाद नहीं करना चाहिए। एक अधिवक्ता को किसी भी मामले में, अवैध या अनुचित साधनों जैसे कि ज़बरदस्ती करके, रिश्वत आदि का उपयोग करके अदालत के फैसले को प्रभावित नहीं करना चाहिए। विपक्ष के प्रति गैरकानूनी तरीके से कार्य करने से इंकार करना एक वकील को विरोधी वकील या विरोधी पक्षों के प्रति अवैध या अनुचित तरीके से कार्य करने से इनकार करना चाहिए। एक वकील को अपने मुवक्किल को किसी भी गैरकानूनी, अनुचित तरीके से काम करने से रोकना चाहिए और न्यायपालिका में लंबित किसी भी मैटर में, विरोधी वकील या विरोधी पक्ष के प्रति अनुचित व्यवहार का उपयोग करने से रोकने के लिए सर्वोत्तम प्रयास करना चाहिए। अनुचित साधनों पर जोर देने वाले मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करने से इंकार करना एक वकील को किसी भी ऐसे मुवक्किल का प्रतिनिधित्व करने से इंकार करना होगा, जो अनुचित साधनों का उपयोग करने पर जोर देता है। एक वकील इस तरह के मामलों में ईमानदारी से फैसला करेगा। वह मुवक्किल के निर्देशों का आँख बंद करके पालन नहीं करेगा। एक वकील को अदालत में बहस के दौरान सम्मानजनक भाषा का उपयोग करना चाहिए। वह प्रैक्टिस के दौरान, झूठे आधार पर पार्टियों की प्रतिष्ठा को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। वह अदालत में बहस के दौरान अनुचित भाषा का उपयोग नहीं करेगा। उचित ड्रेस कोड में दिखाई देना बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के तहत निर्धारित ड्रेस में हर समय एक वकील को अदालत में उपस्थित होना चाहिए और एक अधिवक्ता की उपस्थिति हमेशा प्रस्तुत किये जाने योग्य होनी चाहिए। सार्वजनिक स्थानों पर बैंड या गाउन न पहनना एक वकील को अदालत में या बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा बताए गए स्थानों एवं समाराहों के अलावा, सार्वजनिक स्थानों पर बैंड या गाउन नहीं पहनना चाहिए। आर्थिक हित के मामलों में कार्य नहीं करना चाहिए एक वकील को किसी भी ऐसे मामले में कार्य नहीं करना चाहिए या प्रस्तुत नहीं होना चाहिए जिसमें उसके वित्तीय हित हों। उदाहरण के लिए, एक वकील को उस कंपनी की ब्रीफ भी स्वीकार नहीं करनी चाहिए, जिसका वो स्वयं निदेशक है। मुवक्किल के लिए श्योरिटी के रूप में उपस्थित न होना एक वकील को एक ज़मानत के रूप में नहीं खड़ा होना चाहिए, या एक ज़मानत की साउंडनेस को प्रमाणित नहीं करना चाहिए, जो उसके मुवक्किल के लिए, किसी भी कानूनी कार्यवाही के उद्देश्य के लिए आवश्यक है। आम तौर पर यह माना जाता है कि कानूनी पेशे के सदस्यों के कुछ सामाजिक दायित्व होते हैं, उदाहरण के लिए, गरीबों और वंचितों के लिए प्रो-बोनो सेवा प्रदान करना, इसी प्रकार वकीलों के अदालत के प्रति कर्त्तव्य भी होते हिं। चूंकि एक वकील का कर्तव्य, न्याय के प्रशासन में अदालत की सहायता करना है, इसलिए यह जरुरी हो जाता है कि काउंसिल द्वारा तय आचार संहिता का पालन एक अधिवक्ता द्वारा किया जाए और वो ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल न हो, जो समाज में इस पेशे की छवि को कम कर सकती है।
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