घरेलू हिंसा मामले में पति के अधिकार और कानूनी सुरक्षा
घरेलू हिंसा मामले में पति के अधिकार और कानूनी सुरक्षा
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घरेलू हिंसा अधिनियम (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) का मुख्य मकसद महिलाओं को असली हिंसा या उत्पीड़न से बचाना है, लेकिन व्यावहारिक रूप से कई बार इसका गलत फायदा पक्षकारों द्वारा उठाया जाता है। अक्सर पत्नी या पीड़िता द्वारा अपने पति या परिजनों पर झूठे या अतिरंजित इल्ज़ाम लगाकर कानूनी दबाव बनाया जाता है, ताकि रखरखाव, संपत्ति या अन्य विवादों में फायदा लिया जा सके।
ऐसे हालात में पति के पास भी अपने हक और कानूनी रक्षा के विकल्प मौजूद हैं।
1. झूठे DV मामले की पहचान
सबसे पहले जान लें कि DV केस आपराधिक नहीं, बल्कि सिविल प्रकृति का है। इसमें गिरफ्तारी नहीं होती; मजिस्ट्रेट कोर्ट में आवेदन पर सुनवाई होती है। कई लोग इसे क्रिमिनल मामला समझकर घबरा जाते हैं, जबकि DV एक्ट का फोकस सिर्फ सुरक्षा आदेश (Protection Order), निवास अधिकार (Residence Order) और वित्तीय मदद जैसी राहत पर है।
2. पति के मुख्य कानूनी हक
A. पूर्ण सुनवाई का अधिकार
पति को कोर्ट में अपना पक्ष पूरी तरह प्रस्तुत करने का हक है। वह सबूत, गवाह और दस्तावेज़ पेश कर सकता है, जिससे साबित हो कि इल्ज़ाम झूठे या बढ़ा-चढ़ाकर हैं। कोर्ट तभी फैसला देती है जब दोनों पक्षों को बराबर मौका मिले।
B. क्रॉस-एग्ज़ामिनेशन का अधिकार
पत्नी या उसके गवाहों से सवाल-जवाब (Cross Examination) करने का पूरा हक पति को है। यहीं पर अक्सर झूठ बेनकाब हो जाता है, क्योंकि सबूतों पर आधारित सवालों से फर्जी इल्ज़ाम टिक नहीं पाते।
C. झूठे इल्ज़ाम साबित होने पर सजा की मांग
अगर कोर्ट मान ले कि पत्नी ने जानबूझकर झूठे और बदनीयती से इल्ज़ाम लगाए हैं, तो पति दुर्भावनापूर्ण मुकदमा (Malicious Prosecution) के तहत उसके खिलाफ कार्रवाई मांग कर सकता है।
साथ ही, अगर सामाजिक इज्ज़त को ठेस पहुंची हो, तो मानहानि का मुकदमा भी दायर किया जा सकता है।
D. समान राहत का अधिकार
कई बार पति या उसके परिवार को मानसिक/आर्थिक उत्पीड़न झेलना पड़ता है। ऐसे में पति काउंटर पिटीशन (Counter Petition) दाखिल कर सकता है, जैसे:
झूठे केस वापस लेने का आदेश,
गलत शिकायतों पर रोक, या
अपनी सुरक्षा के लिए प्रोटेक्शन ऑर्डर।
E. सबूतों की ताकत
झूठे केस की सबसे मजबूत ढाल सबूत हैं, जैसे:
पत्नी के मैसेज, ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग,
सीसीटीवी फुटेज या दस्तावेज़ जो साबित करें कि इल्ज़ाम की तारीख पर पति मौजूद ही नहीं था।
कोर्ट में सच सिर्फ कागजात और प्रमाण से साबित होता है, भावनाओं से नहीं।
3. कोर्ट का नजरिया
अब कोर्टें मान रही हैं कि DV कानून का कई बार दुरुपयोग होता है। सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में कहा है:
“कानून सुरक्षा के लिए है, बदला लेने के लिए नहीं।”
इसलिए हर DV केस में स्वतंत्र जांच और पुख्ता सबूत मांगे जाते हैं। सिर्फ इल्ज़ामों से पति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
4. व्यावहारिक सुझाव
भावनाओं में न बहें—कानूनी प्रक्रिया को अच्छे से समझें।
सभी चैट, मैसेज, ईमेल आदि सुरक्षित रखें।
वकील से समय पर लिखित जवाब (Written Reply) दाखिल करवाएं।
किसी धमकी या उकसावे में प्रतिक्रिया न दें—यह आपका केस कमजोर कर सकता है।
बच्चों/परिवार से जुड़े आरोपों में काउंसलिंग सेंटर का इस्तेमाल करें—कई बार यहीं समाधान निकल आता है।
निष्कर्ष
DV कानून महिलाओं की रक्षा के लिए है, लेकिन न्याय तब पूरा होता है जब दोनों पक्षों के हक बचे रहें। अगर पत्नी झूठे इल्ज़ाम लगाती है, तो पति कानून के दायरे में अपनी इज्ज़त, मानसिक सुकून और प्रतिष्ठा की हिफाज़त कर सकता है। सच के साथ खड़ा व्यक्ति हमेशा कानून की छांव में सुरक्षित रहता है।
✍️ रणजीत गिरि, अधिवक्ता,
Email ID –advocate Ranjit giri@gmail.com
डिस्क्लेमर
यह लेख सिर्फ जागरूकता और कानूनी जानकारी के लिए है।
यह किसी खास व्यक्ति या केस की राय नहीं है।
व्यक्तिगत कानूनी सलाह के लिए योग्य वकील से संपर्क कर सकते है जो पूरी तरह से कानून के जानकार है। जागरूक रहिए सजग रहिए
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