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भारत में लॉयर, एडवोकेट, बैरिस्टर में क्या अंतर है

अक्सर लॉयर (Lawyer), एडवोकेट (advocate), बैरिस्टर (Barrister), अटॉर्नी जनरल (Attorney), प्लीडर (Pleader), इत्यादि के बारे में सुनने को कहीं न कहीं मिल ही जाता है.परन्तु क्या आप जानते हैं कि इन सब में क्या अंतर होता है। क्या कोई लॉयर और एडवोकेट एक ही व्यक्ति होते हैं या इनके अलग-अलग नाम हैं। क्या अटॉर्नी,सॉलिसिटर बनने के लिए लॉ (law) में डिग्री लेना आवश्यक होता है इत्यादि जैसे प्रश्नों को और शब्दावलियों को आइये इस लेख के माध्यम से जानने का प्रयास  करते हैं... लॉयर (Lawyer) कौन होता है? ==================== लॉयर, वह व्यक्ति होता है जिसके पास लॉ (law) की डिग्री होती है, जो कानून के क्षेत्र में प्रशिक्षित होता है और कानूनी मामलों पर सलाह और सहायता प्रदान करता है. यानी विधि स्नातक, कानून का जानकार. जिसने LL.B की डिग्री ले ली हो, वह लॉयर कहलाता   है. उनके पास किसी कोर्ट में केस को लड़ने की अनुमति नहीं होती है. लेकिन जैसे ही वह व्यक्ति Bar Council of India (BCI) से रजिस्टर्ड  हो जाता है या वर्तमान में  वह BCI की परीक्षा AIBE को पास कर लेता है तो किसी भी कोर्ट में मुवक्क...

Complainants in cheque bounce cases will be considered 'victims', they can appeal against discharge under the provision of section 372 CrPC: Supreme Court

Complainants in cheque bounce cases will be considered 'victims', they can appeal against discharge under the provision of section 372 CrPC: Supreme Court ================================ June 6, 2025 Compile by Adv. Ranjit Giri, Advocate, Jharkhand High Court       The Supreme Court has clarified in an important decision that complainants in cheque bounce cases fall under the definition of 'victims' and they will have the right to appeal against discharge under the provision of section 372 of the Code of Criminal Procedure, 1973 (CrPC). The judgment was passed by a bench comprising Justice B.V. Nagarathna and Justice Satish Chandra Sharma in M/s Celestium Financial v. A. Gnanasekaran & Ors. [Criminal Appeal Nos. of 2025 (arising out of SLP (Crl.) Nos.137-139/2025)]. Background of the case: The appellant M/s Celestium Financial, a registered financial firm, had advanced various loans to the respondents. For part payment of these loans the respondents issued chequ...

झारखंड में विधवा महिला को पुनर्विवाह के लिए दो लाख देगी सरकार

झारखंड में मुख्यमंत्री विधवा पुनर्विवाह प्रोत्साहन योजना एक अनूठी पहल है, जिसे 6 मार्च 2024 को मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने शुरू किया। यह योजना विधवा महिलाओं को पुनर्विवाह के लिए प्रोत्साहित करने और उनके जीवन में नई शुरुआत करने में सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से लागू की गई है। यह देश की पहली ऐसी योजना मानी जाती है, हालांकि कुछ अन्य राज्यों में भी समान योजनाएं मौजूद हैं। योजना की खासियतें: वित्तीय सहायता:पुनर्विवाह करने वाली विधवा महिलाओं को 2 लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है, जो सीधे उनके बैंक खाते में हस्तांतरित की जाती है। यह राशि उन्हें नया जीवन शुरू करने और आर्थिक रूप से सशक्त होने में मदद करती है। पात्रता मानदंड: निवास: लाभार्थी का झारखंड का स्थायी निवासी होना अनिवार्य है।आयु: महिला की आयु विवाह योग्य होनी चाहिए (कुछ स्रोतों में 18-35 वर्ष का उल्लेख है)। अन्य शर्तें: लाभार्थी सरकारी कर्मचारी, पेंशनभोगी, या आयकर दाता नहीं होनी चाहिए।दस्तावेज: पति का मृत्यु प्रमाण पत्र और पुनर्विवाह का निबंधन प्रमाण पत्र जमा करना अनिवार्य है। आवेदन प्रक्रिया: पुनर्विवाह की तारीख से 1 वर्ष के ...

चेक बाउंस होने पर क्या करें? (What to Do if a Cheque Bounces?):

चेक बाउंस के नए नियम 2025 (Cheque Bounce New Rules 2025 in Hindi)भारत में चेक बाउंस से संबंधित नियमों में 2025 में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं, जिनका उद्देश्य वित्तीय लेनदेन में पारदर्शिता बढ़ाना, धोखाधड़ी को कम करना और चेक बाउंस के मामलों को तेजी से निपटाना है। ये नियम नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत लागू हैं और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और भारत सरकार के सहयोग से अपडेट किए गए हैं।  नीचे 2025 के नए नियमों की जानकारी दी गई है:मुख्य नए नियम (Key Changes in 2025): कठोर सजा (Stricter Penalties): चेक बाउंस के दोषी व्यक्ति को अब 2 साल तक की जेल या चेक की राशि का दोगुना जुर्माना, या दोनों हो सकता है। पहले यह सजा 1 साल तक की थी।बार-बार चेक बाउंस करने वालों के लिए सजा को और सख्त किया गया है, जिसमें जुर्माना और जेल दोनों शामिल हो सकते हैं। तेज शिकायत प्रक्रिया (Faster Complaint Process):चेक बाउंस की शिकायत अब ऑनलाइन दर्ज की जा सकती है, जिससे प्रक्रिया तेज और सुविधाजनक हो गई है।शिकायत दर्ज करने की समय सीमा बढ़ाकर 3 महीने कर दी गई है (पहले यह 1 महीना थी)। यह अवधि चेक ...

Complaint Process in cheque Bounce cases under proposed new Rule 2025

 Complaint Process in cheque Bounce cases under proposed new Rule 2025 =============================== Are you aware that major amendments have been approved in the rules pertaining to check bounce in 2025? The Negotiable Instruments Act has been amended directly by the Government of India bringing in new guidelines regarding check bounce cases. These changes would be effective from April 1, 2025 and are aimed at reducing fraud and making transacting more transparent. Let us know in detail how these new rules will become applicable to you. Provision Of New Punishment On Check Bounce In accordance with the new rules, a person, who purposely causes a check to get bounced, may now be imprisoned for a period of two years or be subject to payment of a fine double the check amount. This punishment was previously for only one year. Now, it has been increased. However, there is still provision regarding the relief in case of between a technical glitch or bank error. New Complaints Procedur...

भारत में वकीलों की हड़ताल पर प्रतिबंध

वकीलों की हड़ताल पर प्रतिबंध, बार काउंसिल में सरकारी नामांकित सदस्य जोड़ने के लिए विधि मंत्रालय करेगा अधिवक्ताओं अधिनियम में संशोधन विधि और न्याय मंत्रालय ने गुरुवार को अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2025 का मसौदा प्रकाशित किया, जिस पर 28 फरवरी तक सुझाव मांगे गए हैं। केंद्र सरकार ने अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में संशोधन का प्रस्ताव रखा है, जिसके तहत वकीलों द्वारा अदालतों का बहिष्कार और कार्य से विरत रहना निषिद्ध होगा। इसके अलावा, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) में केंद्र सरकार द्वारा तीन सदस्यों को नामांकित करने का प्रावधान जोड़ा गया है। नया प्रावधान: वकीलों की हड़ताल पर रोक संशोधन में धारा 35A जोड़ी गई है, जिसमें कहा गया है: > "कोई भी अधिवक्ता संघ या उसका कोई सदस्य, या कोई अधिवक्ता, व्यक्तिगत रूप से या सामूहिक रूप से, अदालतों के काम का बहिष्कार करने, अदालतों के काम से विरत रहने, या किसी भी रूप में अदालतों के काम में बाधा डालने का आह्वान नहीं करेगा और न ही ऐसा करेगा।" इसका उल्लंघन करने पर दुर्व्यवहार (misconduct) माना जाएगा और अधिनियम तथा नियमों के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। ...