जानिए कैसेे होता है किसी अपराधिक मामले में जमानत

Legal Update


यदि कोई आपको गलत व झूठे मुकदमे में आपको गलत तरीके से फंसाया जा रहा है और पुलिस आपको गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही है तो आप क्या करेंगे। आपके मन में सवाल पैदा हो सकता है की क्या बेल/जमानत बिना कोर्ट गए भी पुलिस थाने से हो सकता है ? इस संबंध में मैं विस्तार से जमानत बेल के बारे में आप सभी के मन में चल रहे सवाल जवाब व  विस्तृत जानकारी देने का भरसक प्रयास कर रहा हूं। ये आलेख आपको कैसा लगा कॉमेंट बॉक्स में जरूर लिखियेगा ताकि आपकी प्रतिक्रिया से मैं भी वाकिफ हो सकूं।
सबसे पहले आईये आपको बताते है बेल/जमानत क्या होती है और कैसे किसी अपराधिक मामले में बेल लिया जाता है ?
       यदि कोई व्यक्ति को कोई उसे अपराधिक मामले में झूठा केस कर फंसा रहा है और उसे गिरफ्तारी का भय सता रहा है या तो मामले में पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया हो तो इस दशा में जेल जाने से बचने के लिए या फिर जेल से बाहर निकलने के लिए पुलिस या कोर्ट से आदेश लेने की प्रक्रिया को ही जमानत या बेल कहते हैं .
जमानत कितने तरह का होता है
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दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार जमानत 3 प्रकार की होती है
1. जमानतीय अपराध में बेल या जमानत, ये आपका अधिकार वैधानिक अधिकार है, जिसे आप हक से ले सकते है।
2. गैरजमानतीय अपराध में बेल या जमानत 
3. अग्रिम जमानत या Anticipatry Bail 

CR. P. C. के तहत अपराध दो तरह के होते है 
1. Bailable Offence (जमानतीयअपराध)
2.Non Bailable Offence (गैर जमानतीय अपराध)

1. Bailable Offence (जमानतीय अपराध) – भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 के अनुसार – ज़मानतीय अपराध से अभिप्राय ऐसे अपराध से है जो –
(क) प्रथम अनुसूची में ज़मानती अपराध के रूप में दिखाया गया हो , या
(ख) तत्समय प्रवर्त्य किसी विधि द्वारा ज़मानतीय अपराध बनाया गया हो , या
(ग) गैर-ज़मानतीय अपराध से भिन्न अन्य कोई अपराध हो।
दंड प्रक्रिया संहिता की प्रथम अनुसूची में जमानतीय अपराधों का उल्लेख किया गया है। जो अपराध दंड प्रक्रिया संहिता में जमानतीय बताया गया है और उसमें अभियुक्त की ज़मानत स्वीकार करना पुलिस अधिकारी एवं न्यायालय का कर्त्तव्य है। उदाहरण के लिये, किसी व्यक्ति को स्वेच्छापूर्वक साधारण चोट पहुँचाना, उसे सदोष रूप से अवरोधित अथवा परिरोधित करना, मानहानि करना आदि ज़मानतीय अपराध हैं। जमानतीय अपराध में बेल आरोपी का अधिकार होता है ऐसे में कोर्ट को बेल देना कर्तव्य है इस तरह के अपराध वाली धारा में अगर कोई व्यक्ति पकड़ा जाये या गिरफ्तार किया जाये तो कोर्ट में जमानत की अर्जी लगा सकते है। दंड प्रक्रिया संहिता के तहत कोर्ट पर काम के दबाव को कम करने के लिए अब ये अधिकार पुलिस को भी दिया गया है। अब आप को किसी जमानती अपराध में अरेस्ट नही होना है तो आप को पुलिस स्टेशन से ही जमानत मिल सकता है। कई राज्यों में जमानती अपराध होने पर भी अपराधी आरोपी को पुलिस स्टेशन से जमानत न दे कर पुलिस द्वारा कोर्ट में पेश किया जाता है जहां उनको कोर्ट से जमानत मिल जाती है।
2.Non Bailable Offence (गैर जमानती अपराध) – भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता में गैर -जमानतीय की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गयी है। अतः हम यह कह सकते है कि ऐसा अपराध जो –
(क) जमानतीय नहीं हैं, एवं
(ख) जिसे दंड प्रक्रिया संहिता के प्रथम अनुसूची में ग़ैर-ज़मानती अपराध के रूप में अंकित किया गया है, वे ग़ैर-ज़मानती अपराध हैं।
सामान्यतया गंभीर प्रकृति के अपराधों को ग़ैर-ज़मानतीय बनाया गया है। ऐसे अपराधों में ज़मानत स्वीकार किया जाना या नहीं करना कोर्ट के विवेक एवम अपराध के प्रकृति पर निर्भर करता है। उदहारण के लिये, अतिचार, चोरी, गृह-भेदन, मर्डर, अपराधिक न्यास भंग आदि ग़ैर-ज़मानती अपराध हैं। इनमे जमानत भारतीय दंड संहिता की धारा 437 के अंतर्गत जमानत मिलती है।
3. Anticipatory Bail (अग्रिम जमानत) - न्यायालय का वह निर्देश है जिसमें किसी व्यक्ति को, उसके गिरफ्तार होने के पहले ही, जमानत दे दी जाती है,  अर्थात आरोपित व्यक्ति को इस मामले में गिरफ्तार नहीं किया जायेगा। दंड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत, गैर जमानती अपराध के आरोप में गिरफ्तार होने की आशंका में कोई भी व्यक्ति अग्रिम जमानत का आवेदन दाखिल कर सकता है तथा कोर्ट सुनवाई के बाद सशर्त अग्रिम जमानत दे सकता है। अग्रिम जमानत का यह प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 में दिया गया है।
जमानत के लिए बेल बांड (Bail Bond) या प्रतिभूति :- जमानत के लिए किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति को जेल से छुड़ाने के लिए कोर्ट के समक्ष जो सम्पत्ति के कागजात जमा की जाती है या देने की प्रतिज्ञा की जाती है उसे प्रतिभूति यानि बेल बांड कहते हैं। जमानत देकर न्यायालय इससे निश्चिन्त हो जाता है कि आरोपी व्यक्ति सुनवाई के लिये अवश्य कोर्ट में उपस्तिथ रहेगा अगर वो ऐसा नही करता है तो बेलर आज़ व्यक्ति जिसने उस अपराधी की जमानत दी है वह उसे पकड़ कर कोर्ट या पुलिस को सौंपेगा अन्यथा वह व्यक्ति की जमानत जब्त कर ली जायेगी या जमानत में दी गई राशी को कोर्ट में जमा करवा लिया जायेगा।

प्रतिभूति के प्रकार :- आप बेल या जमानत के लिए प्रतिभूति के तौर पर इनमे से कुछ भी दे सकते हैं
(1) अपनी गाड़ी की आर. सी. 
(2) रजिस्टर्ड जमीन के पेपर या जमीन की फर्द 
(3) बैंक की F.D
(4) इंदिरा विकास पत्र 
(5) यदि सरकारी नौकरी होने पर 3 महीने से कम पुरानी Pay Slip तथा ऑफिस आई. कार्ड. की कॉपी इत्यादि पर कोर्ट के बताये मूल्य के अनुसार हो तो जमानत की प्रतिभूति के लिए उपयुक्त है |

बेल या जमानत मिलने की शर्ते :- 
बेल या ज़मानत पर रिहा होने का मतलब है कि आपकी स्वतंत्रता तो है पर आप पर कई प्रकार की बंदिशे भी कोर्ट द्वारा लगाई जा सकती है ये बंदिशे Bail बांड से अलग है जैसे की आप रिहा हो कर शिकायतकर्ता को परेशान नही करेंगे, किसी भी गवाह या सबूत को प्रभावित नही करेंगे | इसके अलावा कोर्ट आप पर विदेश न जाने के लिए भी बंदिश लगा सकती है तथा आप का उसी शहर में रहना या किसी निश्चित एरिया में रहना तय कर सकती है या आप का किसी निश्चित दिन या फिर हर रोज पुलिस स्टेशन में आकर हाजरी लगवाना भी निश्चित कर सकती है।
यदि आरोपी द्वारा कोर्ट के द्वारा दिए गए आदेश का अवहेलना  करता है तो आरोपी की बेल या जमानत को कोर्ट रद्द कर सकता है। 

जमानत मिलने के मापदंड :-
 अदालतों में जमानत देने के मापदंड बेहद अलग होते हैं। कुछ अपराध की गंभीरता पर निर्भर करते है, तो कई क़ानूनी कार्रवाई पर मान लीजिए किसी गंभीर अपराध में 10 साल की सजा का प्रावधान है और पुलिस को उसमे 90 दिन के अंदर आरोप पत्र दाखिल करना होता है यदि 90 दिन में आरोप-पत्र दाखिल नहीं कर पाती है तो आरोपी जमानत का अधिकारी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167  के तहत है। अक्सर सुनने में आता है कि आरोपी को कोर्ट ने जमानत दे दी और बाकि किसी और आरोपी की जमानत नहीं हुई | एक लड़के को चोरी का षड्यंत्र करते हुए पकड़ा, उसके पास चाकू भी था, उसे जेल भेजा, अदालत में पेश किया। अदालत में उसके वकील ने जमानत पर छोड़ने की याचिका लगाई और 21 वर्ष का वह युवक केवल इसलिए जमानत पर बाहर आ सका, क्योंकि उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था। एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सहारा के सुब्रत राय को दस हजार करोड़ रुपए के भुगतान पर रिहा नहीं किया, लेकिन मां की मृत्यु पर उन्हें मानवीय आधार पर जमानत दी गई।

कोर्ट से बेल या जमानत कैसे ले :- 
जमानत कोर्ट से लेना क्रिमिनल प्रैक्टिस में सबसे मुश्किल काम होता है तथा इसी चीज की क्लाइंट को सबसे ज्यादा जरूरत होती है आइये जानते हैं कि कोर्ट से जमानत कैसे ले |

सबसे पहले अपनी ज़मानत  अर्जी एप्लीकेशन में ये जरुर लिखे की शिकायतकर्ता ने आपके खिलाफ ये झूठी F.I.R क्यों करवाई इसका कारण जरुर बताये क्योंकि कोर्ट आपको दोषी समझती है कोर्ट को ये बताना बहुत ही जरूरी होता है कि आपके खिलाफ ऐसा क्यों किया गया है|ताकि कोर्ट का सबसे पहले ये विचार सही हो सके कि हो सकता है कि F.I.R पूरी तरह से सच्ची नही है
दूसरा आप के खिलाफ जो F.I.R हुई है उसमे से कमियाँ निकाले कि किस तरह से वह F.I.R. झूठी है जैसे कि कोई आप पर सडक दुर्घटना का आरोप लगाता है तो आप ये देखे कि आप की कार अगर आगे नही टकराई है तो लाजमी है की दूसरे ने ही आकर आप को टक्कर मारी है | अगर आपने टक्कर मारी होती तो आपकी गाड़ी का अगला हिस्सा उससे टकराता दूसरा जैसे कोई आप पर मार पिटाई का आरोप लगाये तो अपने जखम भी मेडिकल रिपोर्ट के साथ कोर्ट में दिखाए की अगर आपने उसे अपने साथियों के साथ मिल कर बुरी तरह पीटा था तो आपको चोट भी तो चोट लगी है वो कैसे लग सकती है इसका मतलब पहले लड़ाई उसने ही आप को पीट कर शुरू की थी | इसके लिए आप सी सी टी वी कैमरे की भी कोई रिकोर्डिंग हो तो उसका सहारा ले सकते हो आप अपनी लोकेशन मोबाइल द्वारा भी इसका सहारा ले सकते हो
गिरफ्तारी होने बाद जांच एजेंसी को छोटे अपराधो में 60 दिनों में तथा जघन्य अपराधो में 90 दिन में कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करनी होती है। इस दौरान चार्जशीट दाखिल न किए जाने पर सीआरपीसी की धारा-167 (2) के तहत आरोपी को जमानत मिल जाती है। वहीं 10 साल से कम सजा के मामले में अगर गिरफ्तारी के 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल न किया जाए तो आरोपी को जमानत दिए जाने का प्रावधान है
एफ.आई.आर दर्ज होने के बाद आमतौर पर गंभीर अपराध में जमानत नहीं मिलती। यह दलील दी जाती है कि मामले की छानबीन चल रही है और आरोपी से पूछताछ की जा सकती है। एक बार चार्जशीट दाखिल होने के बाद यह तय हो जाता है कि अब आरोपी से पूछताछ नहीं होनी है और जांच एजेंसी गवाहों के बयान दर्ज कर चुकी होती है, तब जमानत के लिए चार्जशीट दाखिल किए जाने को आधार बनाया जाता है। लेकिन अगर जांच एजेंसी को लगता है कि आरोपी गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं तो उस मौके पर भी जमानत का विरोध होता है क्योंकि ट्रायल के दौरान गवाहों के बयान कोर्ट में दर्ज होने होते हैं। अगर चार्जशीट दाखिल कर दी गई हो तो जमानत केस की मेरिट पर ही तय होती है। केस की किस स्टेज पर जमानत दी दिया जाए, इसके लिए कोई व्याख्या नहीं है। लेकिन आमतौर पर तीन साल तक कैद की सजा के प्रावधान वाले मामले में मैजिस्ट्रेट की अदालत से जमानत मिल जाती है
अगर आप का पहले से कोई अपराधिक रिकोर्ड नही है तो उस स्थिति में जमानत में सहूलियत होगी। वो भी बेल लेने का कारण हो सकता है आप बेल के लिए अपनी टैक्स Return या अपने पर आश्रित परिवार के लोगो या अपनी कम उम्र का सहारा ले कर भी Bail ले सकते है
बेल या जमानत लेने में सबसे बड़ी बाधा पुलिस यानि (आई. ओ.) व सरकारी वकील होते है अगर वे आपकी बेल का ज्यादा विरोध नही करे तो भी कोर्ट आपको Bail देने का मन बन सकता है अब इन लोगो को विरोध करने से कैसे रोके ये मुझे आप लोगो को समझाने की जरूरत नही है
कोर्ट में बैठे जज साहब भी इन्सान ही होते है और हर जज साहब का अपराधी को देखने का नजरिया अलग होता है अगर कोई जज साहब अपराधियों को Bail देने में कुछ ज्यादा रियायत देते है तो ऐसे जज साहब का समय आने पर ही Bail लगाये अन्यथा कुछ दिन ठहर कर ले | क्योकि जमानत न मिलने से तो अच्छा है कुछ दिन ठहर कर ही जमानत ले ली जाये |

जैसे की उपर बताया गया है कि जज साहब भी इंसान होते है उसी प्रकार से Bail लेने के लिए हमेशा जज साहब का मूड देखे की कोर्ट बेल के बारे में क्या सोच रही है तथा किस प्रकार से किस बात या पॉइंट को ज्यादा पसंद करती है तो उसी प्रकार से ही आप जज साहब को समझाये मेरे कहने का मतलब ये है की Bail या जमानत मिलना या नही मिलना ये 80 प्रतिशत तक आपके वकील साहब पर निर्भर करता है कि वे किस प्रकार से कोर्ट को अपने आधार से प्रभावित कर पाते है और बेल ले पाते है इसलिए हमेशा अच्छे व विद्वान  और समझदार वकील साहब को ही अपने जमानत बेल का जिम्मा सौंपें | जमानत का आखिरी फैसला अदालत का ही होता है ऐसे में मामला अगर गंभीर हो और गवाहों को प्रभावित किए जाने का अंदेशा हो तो चार्ज फ्रेम होने के बाद भी जमानत नहीं मिलती। ट्रायल के दौरान अहम गवाहों के बयान अगर आरोपी के खिलाफ हों तो भी आरोपी को जमानत नहीं मिलती। मसलन रेप केस में पीड़िता अगर ट्रायल के दौरान मुकर जाए तो आरोपी को जमानत मिल सकती है | लेकिन अगर वह आरोपी के खिलाफ बयान दे तो जमानत मिलने की संभावना कम  हो जाती है। कमोबेश यही स्थिति दूसरे मामलों में भी होती है। गैर जमानती अपराध में किसे जमानत दी जाए और किसे नहीं, यह अदालत तय करता है और इसको तय करने का कोई कानूनी तरीका नही है ये पूरी तरह से न्यायलय के विवेक पर ही निर्भर करता है |

जमानत का विरोध कैसे करे :- 
कभी कभी हमारे सामने ऐसी स्तिथि आती है जब हमको अपराधी को सबक सिखाने के लिए बेल या जमानत का विरोध करना पड़ता है अगर शिकायतकर्ता लडकी है तो बेल या जमानत का विरोध करने के लिए कोर्ट की ओर से आपको नोटिस जायेगा अन्यथा अगर आप पुरुष है तो कोर्ट में एक कैविट की एप्लीकेशन लगा कर जब भी आरोपी की बेल लगे आप को विरोध के लिए नोटिस मिले ऐसी व्यवस्था कर सकते है। जब भी आप कोर्ट जाये जो भी आपके मेडिकल के पेपर है आप के पास है उसे साथ ले कर जाये व दिखा कर बेल या जमानत का विरोध कर सकते है। कोर्ट में कोई भी सवाल पूछे जाने पर  जवाब बहुत ही शालीनता व समझदारी से दे ताकि कोर्ट को ये लगे की आप सही है।
आप ज़मानत का विरोध खुल कर करे और कोर्ट को बताए की यदि आरोपी जेल से बाहर आ जायेगा तो वह हमे और हमारे गवाहों को धमका सकता है और केस को व सबूतों को प्रभावित कर उसका दुरुपयोग कर सकता है। अगर कोर्ट आरोपी को बेल दे भी दे तो आप उच्च न्यायालय में उसकी बेल ख़ारिज करवाने की अर्जी लगा सकते है।
यदि सरकारी वकील व पुलिस यानि अनुसंधान पदाधिकारी आई. ओ. पर पूरी तरह पैनी  नजर रखे अगर वे आरोपी की तरफदारी करे या उसके जमानत में सहयोग करें या साथ दे तो आप उनकी शिकायत कर के इन्हें बदलवा भी सकते है |

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