जानें भारत में महिलाओं के महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार
1-शादीशुदा या अविवाहित महिलाए अपने साथ हो रहे अन्याय, प्रताड़ना, व घरेलू हिंसा के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मामला दर्ज करा सकती है और उसी घर में रहने का अधिकार पा सकती हैं जिसमे वे वर्तमान में रह रही हैं। इस कानून के अंतर्गत घर का बंटवारा कर महिला को उसी घर में रहने का अधिकार प्राप्त हो जाता है और उसे प्रताड़ित करने वालों को सजा का भी प्रावधान है। साथ ही साथ यदि किसी महिला की इच्छा के विरूद्ध उसके पैसे, शेयर्स या बैंक अकाउंट का इस्तेमाल किसी के द्वारा किया जा रहा हो तो इस घरेलू हिंसा कानून का सहारा लेकर इसे रोक सकती है। घरेलू हिंसा में महिलाएं खुद पर हो रहे अत्याचार के लिए भी सीधे संबंधित न्यायालय से गुहार लगा सकती है, इसके लिए वकील रखना जरुरी नहीं है। अपनी समस्या के समाधान के लिए पीड़ित महिला स्वयं भी अपना पक्ष रख सकती है या अपने वकील के माध्यम से अर्जी लगा सकती है।
2-विवाहित महिलाओं को बच्चे की कस्टडी और मानसिक/शारीरिक प्रताड़ना का मुआवजा मांगने का भी उसे अधिकार प्राप्त है, इसके लिए वह जिले के कुटुंब न्यायलय में अर्जी लगा सकती है। यदि पति द्वारा बच्चे की कस्टडी पाने के लिए कोर्ट में पत्नी से पहले याचिका दायर कर दी गई है, तब भी महिला को कस्टडी का पूर्ण अधिकार है।
3-भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत किसी भी विवाहित महिला को दहेज़ के लिए या अन्य कारणो से पति या पति के नातेदारो द्वारा प्रताड़ित किया जाता है ऐसे मामले में तीन वर्षो का सजा का प्रावधान किया गया है। यह अपराध गैर जमानती प्रकृति का है।
4-हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 के धारा 13 के तहत निम्न परिस्थितियों में कोई भी पत्नी अपने पति से तलाक पाने का अधिकार रखती है। इसके तहत निम्न कारणों से पत्नी अपने पति से तलाक ले सकती है-
पहली पत्नी होने के वावजूद पति द्वारा दूसरी शादी करने पर, पति के सात साल तक कहीं कोई जानकारी नहीं मिलने या लापता होने पर, परिणय संबंधों में संतुष्ट न कर पाने या नामर्द होने पर, मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने पर, धर्म परिवर्तन करने पर, पति को गंभीर या लाइलाज बीमारी होने पर, यदि पति ने पत्नी को त्याग दिया हो और उन्हें अलग रहते हुए एक वर्ष से अधिक समय हो चुका हो तो
5-तलाक के बाद महिला को गुजाराभत्ता, स्त्रीधन और बच्चों की कस्टडी पाने का पूर्ण अधिकार है, लेकिन इसका फैसला साक्ष्यों के आधार पर कुटुंब न्यायलय द्वारा किया जाता है। पति की मृत्यु या तलाक होने की स्थिति में महिला अपने बच्चों की संरक्षक बनने का दावा न्यायलय में कर सकती है।
6-भारतीय दंड संहिता कानून के अनुसार, गर्भपात कराना अपराध की श्रेणी में आता है, लेकिन विशेष परिस्थिती में यदि किसी महिला के स्वास्थ्य को खतरा हो तो वह गर्भपात करा सकती है ऐसी स्तिथि में उसका गर्भपात वैध माना जायेगा साथ ही कोई व्यक्ति महिला की सहमति के बिना उसे गर्भपात के लिए बाध्य नहीं कर सकता यदि वह ऐसा करता है तो महिला कानूनी दावा व मुवाबजा मांग सकती है।
जमीन जायदाद से जुड़े अधिकार
7-तलाक की याचिका दायर करने के दौरान विवाहिता स्त्री हिन्दू मैरेज एक्ट के सेक्शन 24 के तहत केस लड़ने का खर्च और सेक्शन 25 के तहत गुजाराभत्ता ले सकती है। तलाक लेने के निर्णय के बाद सेक्शन 25 के तहत परमानेंट एलिमनी लेने का भी प्रावधान है। विधवा महिलाएं यदि दूसरी शादी नहीं करती हैं तो वे अपने ससुर से मेंटेनेंस पाने का अधिकार रखती हैं इतना ही नहीं, यदि पत्नी को दी गई रकम कम लगती है तो वह पति को अधिक खर्च देने के लिए बाध्य भी कर सकती है गुजारे भत्ते का प्रावधान एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट में भी किया गया है। हिन्दू मैरेज एक्ट के धारा 26 के अनुसार, पत्नी अपने बच्चे की सुरक्षा, भरण-पोषण और शिक्षा के लिए भी न्यालय से निवेदन कर सकती है। हिन्दू मैरेज एक्ट 1955 के धारा 27 के तहत पति और पत्नी दोनों की जितनी भी संपत्ति है, उसके बंटवारे की भी मांग पत्नी कर सकती है इसके अलावा पत्नी के अपने 'स्त्री-धन' पर भी उसका पूरा अधिकार रहता है। पूर्व में 1954 के हिन्दू मैरेज एक्ट में महिलायें संपत्ति में बंटवारे की मांग नहीं कर सकती थीं, लेकिन अब कोपार्सेनरी राइट के तहत उन्हें अपने दादाजी या अपने पुरखों द्वारा अर्जित संपत्ति में से भी अपना हिस्सा पाने का पूरा अधिकार है यह कानून भारत के सभी राज्यों में लागू हो चुका है।
हिंदू विवाहित या अविवाहित, महिलाओं को अपने पिता की सम्पत्ति में बराबर का हिस्सा पाने का वैधानिक अधिकार प्राप्त है, इसके अलावा विधवा बहू अपने ससुर से गुजराभात्ता व संपत्ति में हिस्सा पाने की भी हकदार है।
8- भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता सीआरपीसी के सेक्शन 125 के अंतर्गत किसी भी धर्म को मानने वाली पत्नी अपने पति से भरण पोषण पाने का अधिकारी है।
यहाँ पर यह जान लेना आवश्यक एवम जरुरी होगा कि जिस तरह से हिन्दू महिलाओं को ये तमाम अधिकार प्राप्त हैं, उसी तरह या उसके समकक्ष या सामानांतर अधिकार अन्य धर्मो के महिलाओं को भी उनके पर्सनल लॉ में सुविधा उपलब्ध हैं, जिनका उपयोग वे कर सकती हैं।
यदि कोई आर्थिक रूप से सक्षम व्यक्ति अपनी माँ, जो स्वतः अपना पोषण नहीं कर सकती, का भरण-पोषण करने की जिम्मेदारी नहीं लेता है तो वैसे माता पिता अपने पुत्र से भरण पोषण पाने का अधिकारी है। इसके लिए आप अपने नजदीकी कुटुंब न्यायलय में अर्जी दाखिल कर सकते हैं।
लिव इन रिलेशनशिप से जुड़े अधिकार
9-लिव इन रिलेशनशिप में महिला पार्टनर को वही दर्जा प्राप्त है, जो किसी विवाहिता को पति पत्नी के रूप में मिलता है। लिव इन रिलेशनशिप संबंधों के दौरान यदि पार्टनर अपनी जीवनसाथी को मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना दे तो पीड़ित महिला घरेलू हिंसा कानून की सहायता भी ले सकती है। लिव इन रिलेशनशिप से पैदा हुई संतान को कानूनी वैधता प्राप्त है और उसे भी संपत्ति में हिस्सा पाने का पूर्ण अधिकार है। यदि पत्नी के जीवित रहते हुए यदि कोई पुरुष दूसरी महिला से लिव इन रिलेशनशिप रखता है तो दूसरी पत्नी को भी गुजाराभत्ता पाने का अधिकार है और उससे जन्मे बच्चे को भी कानूनी अधिकार होगा।
10-प्रसव से पूर्व गर्भस्थ शिशु का लिंग जांचने वाले डॉक्टर और गर्भपात कराने का दबाव बनानेवाले पति दोनों को ही अपराधी करार दिया जायेगा लिंग की जाँच करने वाले डॉक्टर को 3 से 5 वर्ष का कारावास और 10 से 15 हजार रुपये का जुर्माना हो सकता है लिंग जांच का दबाव डालने वाले पति और रिश्तेदारों के लिए भी भारतीय दंड संहिता में सजा का प्रावधान है।
11-हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट के तहत कोई भी वयस्क विवाहित या अविवाहित महिला बच्चे को गोद ले सकती है। यदि महिला विवाहित है तो पति की सहमति के बाद ही बच्चा गोद ले सकती है।
12- बच्चो के स्कूल में दाखिले के लिए स्कूल के फॉर्म में पिता का नाम लिखना अब अनिवार्य नहीं है बच्चे की माँ या पिता में से किसी भी एक अभिभावक का नाम लिखना ही पर्याप्त है। इसके लिए कोई स्कूल प्रबंधन दबाब नही बना सकता है।
कामकाजी महिलाओं के अधिकार
13-इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट रूल- 5, शेड्यूल -5 के तहत यौन संपर्क के प्रस्ताव को न मानने के कारण कर्मचारी को काम से निकालने व अन्य लाभों से वंचित करने पर कार्रवाई करने का प्रावधान है। समान काम के लिए महिलाओं को पुरुषों के बराबर समान वेतन पाने का अधिकार है ।
धारा 66 के अनुसार, सूर्योदय से पहले [सुबह 6 बजे] और सूर्यास्त के बाद [शाम 7 बजे के बाद] काम करने के लिए महिलाओं को जबरदस्ती बाध्य नहीं किया जा सकता । भले ही उन्हें ओवरटाइम दिया जाए, लेकिन कोई महिला यदि शाम 7 बजे के बाद ऑफिस में न रुकना चाहे तो उसे रुकने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
14 कार्य स्थल में होने वाले उत्पीड़न के खिलाफ महिलायें शिकायत दर्ज करा सकती हैं।
15- मेटरनिटी लिव प्रसूति सुविधा अधिनियम 1961 के तहत, प्रसव के बाद महिलाओं को तीन माह की वैतनिक [सैलरी के साथ] मेटर्निटी लीव दी जाती है इसके बाद भी वे चाहें तो और तीन माह तक अवैतनिक [बिना सैलरी लिए] मेटर्निटी लीव ले सकती हैं।
16-हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत, विधवा अपने मृत पति की संपत्ति में अपने हिस्से की पूर्ण मालकिन होती है पुनः विवाह कर लेने के बाद भी उसका यह अधिकार बना रहता है।
17-यदि पत्नी पति के साथ न रहे तो भी उसका दाम्पत्य अधिकार कायम रहता है यदि पति-पत्नी साथ नहीं भी रहते हैं या विवाहोत्तर सेक्स नहीं हुआ है तो दाम्पत्य अधिकार के प्रत्यास्थापन [रेस्टीट्यूशन ऑफ़ कॉन्जुगल राइट्स] की डिक्री पास की जा सकती है।
18-यदि पत्नी किसी कारण से एचआईवी ग्रस्त है तो उसे अधिकार है कि उसका पति उसकी उचित देखभाल करे और समय समय पर दवा उपलब्ध करवाए।
19-अन्य समुदायों की महिलाओं की तरह मुस्लिम महिला भी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत गुजाराभत्ता पाने की हक़दार है मुस्लिम महिला अपने तलाकशुदा पति से तब तक गुजाराभत्ता पाने की हक़दार है जब तक कि वह दूसरी शादी नहीं कर लेती है [शाह बानो केस]
20-हाल ही में मुंबई हाई कोर्ट द्वारा दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसला में कहा गया कि दूसरी पत्नी को उसके पति द्वारा दोबारा विवाह के अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि यह बात नहीं कल्पित की जा सकती कि उसे अपने पति के पहले विवाह के बारे में जानकारी थी। बहु विवाह के लिए भारतीय दंड संहिता के धारा 494 में सात साल तक का सजा का प्रावधान है।
21-मासूम बच्चियों के साथ आए दिन बढ़ते बलात्कार के मामले को गंभीरता से लेते हुए हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका पर महत्वपूर्ण निर्देश दिया है। अब बच्चियों से सेक्स करने वाले या उन्हें वेश्यावृत्ति में धकेलने वाले लोगों के खिलाफ बलात्कार के आरोप में मुकदमें दर्ज होंगे, क्योंकि चाइल्ड प्रोस्टीट्यूशन बलात्कार के बराबर का अपराध माना गया है।
22-कई बार बलात्कार की शिकार महिलायें लोक लाज, पुलिस जाँच और मुकदमें के दौरान जलालत व अपमान से बचने के लिए चुप रह जाती है। जिसके कारण बलात्कारियों का मनोबल बढ़ जाता है। इसी आशय से भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता में हाल ही में संशोधन किया गया है। इसके अंतर्गत -
बलात्कार से सम्बंधित मुकदमों की सुनवाई संभव हो तो महिला जज ही करेगी,
ऐसे मामलों की सुनवाई दो महीनों में पूरी करने के प्रयास होंगे,
पीडिता का बयान महिला पुलिस अधिकारी ही दर्ज करेगी,
पीडिता के बयान घर में उसके परिजनों की मौजूदगी में लिखे जायेंगे,
23-रुचिका-राठौड़ मामले से सबक लेते हुए भारत का कानून मंत्रालय अब छेड़छाड़ को सेक्सुअल क्राइम्स [स्पेशल कोटर्स] बिल 2010 नाम से एक विधेयक का एक मसौदा तैयार किया है इसके तहत छेडछाड को गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध माना जायेगा यदि ऐसा हुआ तो छेड़खानी करने वालों को सिर्फ एक शिकायत पर गिरफ्तार किया जा सकेगा और उन्हें थाने से जमानत भी नहीं मिलेगी।
24-हाल में सरकार द्वारा लिए गए एक निर्णय के अनुसार अकेली रहने वाली महिला को खुद के नाम पर राशन कार्ड बनवाने का अधिकार प्राप्त है। -लड़कियों को ग्रेजुएशन तक फ्री-एजुकेशन पाने का अधिकार है ।
यदि कोई अभिभावक अपनी नाबालिग बेटी की शादी कर देते हैं तो वह लड़की बालिग होने पर दोबारा शादी कर सकती है, क्योंकि कानूनी तौर पर नाबालिग विवाह मान्य नहीं होती है ।
पुलिस स्टेशन से जुड़े विशेष अधिकार
25-आपके साथ हुआ अपराध या आपकी शिकायत यदि गंभीर प्रकृति की है तो पुलिस एफआईआर यानी फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट दर्ज करेगी और उसकी जांच कर रिपोर्ट सौंपेगी। यदि पुलिस एफआईआर दर्ज करती है तो एफआईआर की कॉपी निशुल्क पीड़िता को उपलब्ध करवाएगा।
26-सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद किसी भी तरह की पूछताछ के लिए किसी भी महिला को पुलिस स्टेशन में नहीं रोका जा सकता। पुलिस स्टेशन में किसी भी महिला से पूछताछ करने या उसकी तलाशी के दौरान महिला कॉन्सटेबल का होना जरुरी है।
महिला अपराधी की डॉक्टरी जाँच महिला डॉक्टर करेगी या महिला डॉक्टर की उपस्थिति के दौरान कोई पुरुष डॉक्टर करेगा।
27-किसी भी महिला गवाह को पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन आने के लिए जबरदस्ती बाध्य नहीं किया जा सकता जरुरत पड़ने पर उससे पूछताछ के लिए पुलिस को ही उसके घर जाना होगा।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें